“मैं इंसान हूँ ” इस पोस्ट में जो कविता प्रस्तुत की गयी है वो Rahul Samar जी के द्वारा लिखी गयी है। इस Poetry में आप को deep quotes about life मिलेंगे। और कविता की भाषा में हर शब्द का वजन होता हैं।
ना हिंदू हूं, ना सिख हूं
और ना ईसाई, मुसलमान हूं,
मुझे धर्म, जात के चश्मे से मत देख
मैं तो बस इंसान हूं…
कभी यहां मरता हूं.
कभी वहां मरता हूं,
ना भारत हूं,
ना ही पाकिस्तान हूं….
मैं इंसान हूं….
इन धर्म के धागों में,
कभी सरहद के भागों में,
कभी सत्ता की लूट में,
कभी दो जून की भूख में,
मरता वो इंसान हूं
राम रहमान पलटवार में,
कभी गुजरात के नरसंहार में,
कभी कश्मीर की वादी में,
कभी बस्तर के जंगल में,
चौरासी में दिल्ली का जलता मकान हूं,
मैं इंसान हूं….
जो धर्म के नाम पे ठगते हैं,
जो सत्ता से अपनी जेबें भरते हैं,
जो आतंक के रास्ते चलते हैं,
जो जुल्म बेसहारा पर करते हैं,
उनके अंदर बसता में हैवान हूं,
हाँ, मैं इंसान हूं….
ना हिंदू, ना सिख हूं,
ना ईसाई, ना मुसलमान हूं,
मैं इंसान हूं….
बढ़ता चल
बढ़ता चल तू राही बढ़ता चल ।।।
चल चला चल राही चल चला चल ।
ये जमीन तेरी ये आसमान तेरा
आज भी तेरा और तेरा ही है कल
चल चला चल राही चल चला चल
आज शांति से तू बैठा है कल रोना तुझे पड़ेगा
अपनों की लाशों का बोझ ढोना तुझे पड़ेगा
कभी तू हिन्दू देखता कभी देखता मुसलमान
धर्म के मामले में साथी तेरा मन चंचल
चल चला चल राही चल चला चल
आज जो भाषण सुना गए
तेरे घर का खाना खा गए
कल तेरा ही घर हटवाएंगे
जब वहां सड़क नयी बनवाएंगे
जब तू विरोध अपना दर्ज करवायेगा
सिवाए कमर पे लाठी के कुछ न हाथ आएगा
जब एक कोई मरेगा क्या,
तब ही कोई कुछ करेगा ??
क्या ऐसा चाहिए तुझको कल ???
चल चला चल राही चल चला चल
समझौता कभी ना करना
गलत से कभी न डरना
तेरी इस कोशिश का मिलेगा तुझको फल
चल चला चल राही चल चला चल ।