हम अक्सर दूसरों की तुलना में खुद को जरा सा बेहतर साबित करने में अपनी उम्र को बेहतरीन समय गंवा देते हैं। यह बेकार की कवायद है। तुलना से हमें निराशाओं के अलावा कुछ नहीं मिलता, क्योंकि हर इंसान अपने-अपने क्षेत्र में दूसरों से बेहतर होता ही है। ईष्या निराशा, असुरक्षा और डर भी इसी से उपजते हैं। गहराई से देखें तो पैदा होते ही इसकी ट्रेनिंग शुरू हो जाती है। इससे हम जान पाते हैं कि दूसरों की तुलना में हम कितने ज्यादा स्मार्ट हैं? कितना बड़ा ओहदा है? कितने अमीर या खूबसूरत हैं? ताकतवर या भाग्यशाली हैं? परिणाम स्वरूप कितने हम चलते-फिरते मन ही मन दूसरों से तुलना करके या तो सुकून महसूस करते हैं या उदास हो जाते हैं।
तुलना एक भयंकर रोग है। जब-जब हम तुलना करते हैं, अपनी मौलिकता को ध्वस्त करते जाते हैं। अपनी श्रेष्ठता बाहर लाने के बजाए हम दूसरों से मुकाबला करने की होड़ में लग जाते हैं। सवाल उठता है जब कुदरत ने एक जैसे चेहरे मोहरे नहीं बनाए, हर इंसान को अनूठे गुणों से नवाज़ा है तो फिर हम तुलना करने पर क्यों आमादा रहते हैं ? सवाल यह भी उठता है कि क्या हम बिना तुलना किए खूबसूरत जिंदगी नहीं जी सकते ?
क्या हम ऐसे माहौल में नहीं रह सकते जहां हमारे मन में ऊंच-नीच, अमीर-गरीब कामयाबी-नाकामयाबी या सुंदर-असुंदर का भाव ही न रहे? दरअसल तुलना छोड़ते ही स्वयं को भूलकर, दूसरों के पीछे लग जाते हैं। तुलना छोड़ते ही हमारा परिचय खुद से होने लगता है। हमें खुद को जानने-पहचानने और तराशने का अवसर मिलता है। इसी से ही हम जान पाते हैं, कि हमारे भीतर कौन-कौन से गुण छिपे हैं ? कुदरत ने हमें किन गुणों को निखार कर, धरती को खूबसूरत बनाने के लिए भेजा है? यदि हम इस दिशा में काम करेंगे तो मन भय और असुरक्षा से आजाद हो जाएंगें।
वास्तव में हम अपनी जिंदगी के बादशाह हैं। हमारा कोई सानी नहीं है, जिससे हम मुकाबला करें। हमें स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ साबित करने की जरूरत ही नहीं है। मजे की बात है स्वयं को जानना, खोजना और तराशना दूसरों से तुलना करने से ज्यादा रोचक, रोमांचक और खूबसूरत है। यह निरंतर प्रक्रिया है जो व्यक्ति की छिपी हुई प्रतिभाओं को बाहर लाती रहती है जबकि तुलना क्षमताओं को सीमित कर देती है। वैसे भी, तुलना केवल वस्तुओं की क्वालिटी जानने और उन्हें बेहतर बनाने का पैमाना है। इससे इंसान की क्षमताओं को नहीं नापा जा सकता।
दूसरों से तुलना करना, खुद का अपमान है। जिस काम को करने के लिए आपको कुदरत ने जन्म दिया है, उसे छोड़ कर हम दूसरों के साथ होड़ करके, उन जैसा कैसे बन सकते हैं?