Abby Viral के ये पंक्तियाँ चिंतनपूर्ण गीतों को दर्शाती हैं जो आत्मविचार, वास्तविकता, और जीवन में सार्थक क्रियाओं को प्रोत्साहित करती हैं। एक सजग भारतीय रैपर के रूप में, उनका उद्देश्य सुनने वालों को गहरे सत्यों पर विचार करने और खुद को और समाज में सकारात्मक परिवर्तन करने के लिए प्रेरित करना है।
- “मतलब के रिश्ते नाते, मतलब की ही यारी है
मतलब से लोग सारे, झूठी दुनिया सारी है
मतलब से मतलब सबको, मतलब से है काम
मतलब के बिना सबका, कौड़ियों में दाम”
अर्थ : “रिश्तों और नातों में मतलब होता है, दोस्ती मतलब की होती है।
लोग मतलब से सब कुछ करते हैं, पूरी दुनिया मतलब में ही झूठी है।
सभी काम मतलब से होते हैं, सब कुछ मतलब से ही होता है।
मतलब के बिना, सभी कुछ कौड़ियों में है।”
इस कविता के माध्यम से यह सुझाव दिया जा रहा है कि लोग अक्सर अपने रिश्तों और कार्यों में सिर्फ मतलब की तलाश करते हैं, और इससे जुड़ी दुनिया में झूठा बन जाता है।
- “मौत साली निश्चिंत है, दिल फिर भी निश्चिंत है
सोच जिसका विकसित है, बस वही शिक्षित है
इंसान बना गिरगिट है”
आँख खोल के जो देखा मौत सामने खड़ी है
हर कदम संभल के के चलना
खौफनाक हार घड़ी है
अर्थ : यह कविता एक व्यक्ति के जीवन और मौत के साथ संबंधित है, जो सीख और ज्ञान की महत्वपूर्णता पर बल देती है। यह व्यक्ति मौत को निश्चिंतता के साथ स्वीकार करता है, लेकिन उसका दिल फिर भी निश्चिंत है। उसने सोच को उन विचारों के साथ जोड़ा है जो उसने विकसित किए हैं और जो उसे शिक्षित बनाते हैं। कविता इंसान की स्थिति को एक गिरगिट के समान बयान करती है, जिसमें संघर्ष और जीवन की चुनौतियाँ हैं। यह एक खौफनाक हार के मोमेंट्स के साथ जीवन की अद्वितीयता को सामंजस्यपूर्णता के साथ मिलाती है।
- “क्या था लाया साथ, क्या ले जाने की पड़ी है
कर्म करना धर्म सबका, झूठ कि मुझको ना पड़ी है
खलबली है, ऐसी खलबली है
सर चढ़ी है, जिद ये सर चढ़ी है
हड़बड़ी है ज़िंदगी मे जंग हर घड़ी की
हथकड़ी की हर कड़ी को आज तोड़ दो
मुश्किलें विकत पड़ी-पड़ी हों चीख की
ध्वनि से सनसनी फैला दो ऐसा शोर हों
खुलेआम कैसे खेले खूनी खेल
कर दे खलबली के नाम कत्लेआम
खुदमे खोया-खोया खिड़कियों को खोल
खाब खोखले से खोजे क्रांतिकारी काम
कसम से किसका किस्सा कौन किसका कर्मचारी
किसके कर्ज, कर्म कितना किसका दाम
काले कांड करके कैदियों की कब्र कील
कुरसिया कहानिया कमाल के ख्याल
अर्थ : यह प्रश्नचिन्ह भरा हुआ है, जिसमें एक निष्कलंक समाज की दिशा में सोच और क्रियाओं के विचार किए जा रहे हैं। इसमें समाज के अंदर चल रहे अनेक समस्याओं, झूठ और भ्रष्टाचार की आलोचना की गई है। इसके माध्यम से कर्म, धर्म, और सच्चाई के महत्व को उजागर किया जा रहा है।
इसके माध्यम से जीवन की हर कठिनाई को आगे बढ़ने की ऊर्जा और इसमें जुटी मेहनत की महत्वपूर्णता को समझाया जा रहा है। इसमें समाज में हो रही हर बदलाव की आवश्यकता को महसूस करने का भी सुझाव है।
- “पेट से सीख के नी कभी कोई हुनर आए
हारने के बाद कोई निखार कोई बिखर जाए
ना कोई काम तेरे हौसलों से बड़ा भाई
जीत है नसीब में जो लड़ा आगे बढ़ा भाई”
सोचो तो ज़िंदगी से बड़ी कोई सजा नहीं
मेरा है जुर्म की मैं मरा नहीं.. हु खड़ा यही
कितने हिस्सों मे हु बिखर गया मैं टूट के
वजूद मेरे हिस्से मे है आज कुछ बचा नहीं
- अर्थ : 1. “पेट से सीख के नी कभी कोई हुनर आए” – यह बताता है कि जीवन की सीख और अनुभव हमें आगे बढ़ने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
- “हारने के बाद कोई निखार कोई बिखर जाए” – इसलिए जब हार होती है, तो उसमें भी कुछ सीख होती है और व्यक्ति में और भी उत्साह बना रहता है।
- “ना कोई काम तेरे हौसलों से बड़ा भाई” – इससे यह बताया जा रहा है कि हौसला और संघर्षशीलता में ही असली काबिलियत होती है।
- “जीत है नसीब में जो लड़ा आगे बढ़ा भाई” – जीत का सच्चा अर्थ यह है कि जो व्यक्ति संघर्ष करता है, वही आगे बढ़ता है, भले ही नसीब में जीत हो या हार।
- “सोचो तो ज़िंदगी से बड़ी कोई सजा नहीं” – यह बताता है कि जीवन से सीखना और अनुभव हासिल करना ही असली बड़ी सजा है।
- “मेरा है जुर्म की मैं मरा नहीं.. हु खड़ा यही” – इससे यह दिखता है कि व्यक्ति अपने जुर्मों और मुश्किलों का सामना करता है, लेकिन उसे हार नहीं मानने का इरादा है।
- “कितने हिस्सों मे हु बिखर गया मैं टूट के” – यह बताता है कि जीवन में हम कभी-कभी टूट जाते हैं, लेकिन उस टूटे हुए हिस्से से हम और भी मजबूत हो सकते हैं।
- “वजूद मेरे हिस्से मे है आज कुछ बचा नहीं” – यह बताता है कि जीवन के सभी हिस्सों से गुजरने के बाद भी, व्यक्ति में उसका अहम हिस्सा हमेशा मौजूद रहता है।
यह कविता उत्साही है और संघर्षपूर्ण भावनाओं को सुंदरता से व्यक्त करती है, जो अच्छे और बुरे समयों में आते हैं।
- “यहां पे आम घर के लड़के, लड़ झगड़े के,
पार करते जिंदगी की हर डगर पे,
पर मगर आराम करके बेख़बर ऐलान
डरके खाली बैठना ना घर पे
अगर पकड़ बनाओगे हुनर पे
खुद को पाओगे शिखर पे”
अर्थ : इस कविता में व्यक्ति को संघर्षपूर्ण जीवन के माध्यम से गुजरने की बात की गई है। यहां पर लड़के, जो एक आम घर के हैं, जीवन में आने वाली मुश्किलों और टाक़तों के सामना करते हैं। जिंदगी की हर कदम पर उन्हें झगड़ा करना पड़ता है, लेकिन वे यह सिखते हैं कि डर के बजाय आराम से और बेख़बरी से आगे बढ़ना चाहिए। हुनर को पकड़ कर, संघर्षों का सामना करके, वे अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में सफल हो सकते हैं और अपने जीवन को शिखर पर पहुंचा सकते हैं।
- ”तरक्की की फसल तो हम भी काट लेते,
थोड़े से तलवे अगर हम भी चाट लेते
बस मेरे लहज़े में ‘जी हुजूर’ ना था
इसके अलावा मेरा कोई कुसूर ना था
अगर कभी मैं बे-ज़मीर हो जाता
यकीन मानिए! माई कब का’ अमीर हो जाता”
अर्थ : कवि कहते हैं कि उनकी बोलचाल की लहज़े में ‘जी हुजूर’ नहीं था, लेकिन इसके बावजूद उनमें कोई दोष नहीं था। उन्होंने यह भी कहा है कि अगर कभी उनमें बेज़मीरी होती, तो वे अमीर बन जाते।
कविता में यह भी उजागर होता है कि व्यक्ति की सफलता और अमीरी का मापदंड उसकी मेहनत, ईमानदारी, और सीधेपन पर निर्भर करता है, न कि उसके बोलचाल की शैली पर।