कबीर दास के 10 आसान दोहे – अर्थ सहित

कबीर दास के दोहे अर्थसहित जो आपको याद करने में बहुत आसान होगा..

बुरा जो देखने मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय |

जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला |
जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं हैं |


धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय |

मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है | अगर कोई माली किसी पेड़ को
सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा


अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धुप |

न तो अधिक बोलना अच्छा है, न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है |
जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धुप भी अच्छी नहीं है | 


जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई ।
जब गुण को गाहक नहीं, तब कौडी बदले जाई ।

कबीर कहते हैं कि जब गुण को परखने वाला गाहक मिल जाता है तो
गुण की कीमत होती है। पर जब ऐसा गाहक नहीं मिलता, तब गुण
कौडी के भाव चला जाता है।


बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड खजूर ।
पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ||

खजूर के पेड़ के समान बड़ा होने का क्या लाभ, जो ना ठीक से
किसी को छाव दे पाता है और न ही उसके फल सुलभ होते हैं।


आछे दिन पाछे गए हरी किया न हेत ।
अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ॥

देखते ही देखते सब भले दिन अच्छा समय बीतता चला गया तुमने प्रभु से
लौ नहीं लगाई, प्यार नहीं किया समय बीत जाने पर पछताने से क्या
मिलेगा? पहले जागरूक न थे, ठीक उसी तरह जैसे कोई किसान अपने
खेत की रखवाली ही न करे और देखते ही देखते पंछी उसकी फसल 
बर्बाद कर जाएं।


बोली एक अनमोल हैं, जो कोई बोलै जानि,
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि ।

यदि कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो उसे पता है कि
वाणी एक अमूल्य रत्न है। इसलिए वह ह्रदय के तराजू में तोलकर
ही उसे मुंह से बाहर आने देता है ।


जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पडा रहन दो म्यान ।

सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए। तलवार
का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का उसे ढकने वाले खोल का ।


पोथी पढि पढि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढे सो पंडित होय ।

बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुंचे गए,
पर सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के
केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप
पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।


कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर ।

इस संसार में आकर कबीर अपने जीवन में बस यही चाहते हैं कि
सबका भला हो और संसार में यदि किसी से दोस्ती नहीं तो दुश्मनी 
भी न हो |


कबीर दास के दोहे

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