आखिर क्यों सोते हैं हम ? वैज्ञानिक रूप से हमें कितने घंटे सोना चाहिए !

नींद हमारे जीवन की एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है. हम क्यों सोते हैं और कितने घंटे सोना जरूरी है, इस विषय में पुरानी विचार रही है कि रात को कम से कम 7 घंटे सोना जरूरी है. वैज्ञानिक शोध के आधार पर अब यह मान्यता चल पड़ी है कि शरीर को सुचारू रूप से चलाने के लिए 10 घंटे विश्राम करना चाहिए.

क्या आप ने कभी एक रात या कई रातें केवल करवटें बदलते बिताई हैं? यदि आप को अनिद्रा या बेचैनी का अनुभव हुआ है, तो आप को रात्रि की सुखद नींद से होने वाले लाभों को बताना जरूरी नहीं, प्राय: एक तिहाई व्यक्ति अनिद्रा से पीड़ित होते हैं. लगभग 50% लोगों के लिए अनिद्रा एक गंभीर समस्या होती है. नींद के बारे में नए-नए तथ्य नित सामने आ रहे हैं.

मनुष्य और पशु सभी सोते हैं, पर उन के सोने का समय, दिनरात और घंटे में फर्क होता है, चमगादड़ 24 में से 14 घंटे सोता है. बिल्ली 15 घंटे सोती है. गाय और घोड़े एक दिन में केवल 3 या 4 घंटे सोते हैं.

नींद के ज्यादा या कम समय तथा लिंग, जाति, व्यक्तित्व एवं बुद्धिमानी के बीच कोई सहसंबंध दिखाई नहीं देता. अल्बर्ट आइंस्टीन को बहुत अधिक सोने की आवश्यकता अनुभव होती थी, जबकि नेपोलियन, चर्चिल, मार्केट थैचर और जवाहरलाल नेहरू आदि बहुत कम नींद से ही अच्छी तरह काम चला लेते थे.

शोधकर्ताओं का मानना है कि एक रात में हम नींद के कई चक्रों से गुजरते हैं. कभी हमें हलकी नींद आती है तो कभी गहरी, कभी सपनों की नींद में हम खोए रहते हैं. यह संपूर्ण निद्राचक्र एक रात में कई बार अपनी हल्की और तीव्र स्थिति की ओर गतिशील रहता है, कम से कम 4 या 5 बार यह क्रिया एक रात में होती है. प्रत्येक चक्र लगभग छेद या 2 घंटे का होता है, जैसे-जैसे सुबह होती है, हमारी पलकें खुलने लगती हैं. वास्तव में हमारी नींद 3 बातों पर आधारित होती है, वातावरण, ऐंद्रिय शिथिलता एवं वायु.

वातावरण हमारी निद्रा के समय को प्रभावित करता है. यदि किसी व्यक्ति को अंडरग्राउंड कमरे में सुलाया जाए तो उस की नींद का समय प्रतिदिन लगभग आधा घंटा बढ़ता जाएगा. धीरेधीरे वह सुबह देर तक सोने का आदी हो जाएगा. इसलिए कहा गया है कि व्यक्ति को खुले और हवादार कमरे में सोना चाहिए.

ऐंद्रिय शिथिलता या शारीरिक थकान से भी नींद का समय घटताबढ़ता रहता है. यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति प्रतिदिन एक घंटा कम सोए तो सप्ताह के अंत में उसे नींद घेरे रहेगी. कोई भी मनुष्य अधिक से अधिक 10 दिन बिना सोए बिता सकता है, पर उसे कोई स्थायी नुकसान नहीं होगा.

चुस्ती-फुर्ती बनाए रखने के लिए सोना जरूरी
1930 के दशक में यद्यपि ब्रेनवेव के मापन की ईईजी मशीनें विदेशों में विकसित हो चुकी थीं, लेकिन निद्रा के विषय में शोधपरक अध्ययन 1950 के दशक से ही प्रारंभ हुआ. इस के पहले नींद आना केवल दैनिक क्रियाकलापों से कुछ समय के लिए अलगाव या विश्राम के रूप में समझा जाता था. आज भी हम भलीभांति यह नहीं जानते कि हम सोते क्यों है या हमें कितना सोना चाहिए? इस का उत्तर यही है कि दिन भर चुस्तीफुर्ती और चैतन्यता बनाए रखने के लिए जितना जरूरी हो, सोना चाहिए.

आयु नींद का तीसरा आधार है. जैसेजैसे हमारी उम्र बढ़ती जाती है, हमें गहरी और सुखद नींद आने में परेशानी भी बढ़ती जाती है. बच्चों का रातढ में 10 घंटे सोना जरूरी होता है. वृद्ध लोगों को नींद कम आती है और जल्दी टूट भी जाती है. इस का एक कारण यह है कि उन्हें प्रायः आर्थराइटिस, श्वास तकलीफ होती है, जिस से अनिद्रा की समस्या बनी रहती है.

नींद का धीरे-धीरे आना और क्रमशः टूटना उत्तम स्वास्थ्य के लिए उपयोगी माना गया है. इस से मस्तिष्क, शरीर तथा हारमोन्स की शक्ति अर्जित होती है, पर ऐसी सहज और सुखद नींद 40 साल की उम्र के बाद प्रायः कम आती है.

नींद में सपने आना भी जरूरी माना गया है. इस से मस्तिष्क में एकत्र तमाम अनुपयोगी बातें, विचार तथा सूचनाएं बाहर निकल जाती हैं और मस्तिष्क बिलकुल साफ हो जाता है.

दिन भर में अनेक प्रकार के संक्रमण शरीर में पैदा हो जाते हैं, नींद के अभाव में रक्त में मौजूद सफेद कणों को विजातीय तत्त्वों से लड़ने और इन्हें दूर भगाने में कठिनाई होती है. नींद कम आने से योग्यता, कार्यक्षमता तथा एकाग्रता घटती है. मुख्यरूप से नींद को ले कर 3 तरह की समस्याएं सामने आती हैं, अनिद्रा, अतिनिद्रा तथा निद्राचार यानी नींद में चलना.

अनिद्रा बहुत सामान्य समस्या है. यह 3 प्रकार से घटित होती है. रोगी को सोने में कठिनाई होती है, वह रात में जाग जाता है या फिर उस की नींद जल्दी टूट जाती है। और फिर वह सो नहीं पाता. अनिद्रा का कारण मनोवैज्ञानिक या व्यावहारिक भी हो सकता है. उदाहरणार्थ जल्दी नींद टूटना प्रायः चिंता या निराशा के कारण होता है. इस का कोई तात्कालिक समाधान नहीं है. कारण जानना और धीरेधीरे उसे मनोवैज्ञानिक तरीके से दूर करना ही इस का उपाय हो सकता है.

अतिनिद्रा का कारण नींद पूरी न होना या अत्यधिक थकान हो सकती है. मादक पदार्थों का सेवन भी अतिनिद्रा का कारण होता है. स्वयं इस का कारण समझ कर उचित उपाय किया जा सकता है. निद्राचर यानी नींद में चलना भी अत्यधिक मानसिक तनाव, बिस्तर आरामदायझक न होना, किसी प्रकार का शारीरिक व्यायाम या अनियमित खानपान के कारण हो सकता है.

सुखद नींद के लिए सहज और स्वाभाविक दिनचर्या तथा जीवनशैली में थोड़ा परिवर्तन लाना जरूरी है. आप क्या खाते हैं और कब खाते हैं, इस का प्रभाव आप की निद्रा पर पडता है, लिहाजां सोने से 2-3 घंटे पहले भोजन कर लेना चाहिए. सोते समय आप अपनी मनपसंद पुस्तक या सुगम संगीत का आनंद ले सकते हैं. घर साफसथुरा होना चाहिए. यौगिक क्रियाएं भी गहरी नींद लाने में सहायक होती है.

नींद हमारे जीवन की महत्वपूर्ण आवश्यकता है. इस विषय पर होने वाले शोधों से इस संदर्भ में कई महत्त्वपूर्ण बातें सामने आई हैं

प्रमुख वैज्ञानिकों का मानना है कि आधुनिक समाज में नींद के महत्व की अनदेखी हो रही है. इसके कारण शरीर के डीएनए पर होने वाला असर कई तरह की बीमारियों की वजह बन रहा है. बेहतर स्वास्थ्य और अच्छी नींद के रिश्ते की पुष्टि करते हुए वैज्ञानिक लोगों को अपना स्वास्थ्य बेहतर करने के लिए अच्छी नींद की सलाह दे रहे हैं.

वैज्ञानिकों ने बताया कि कई लोग अपने बॉडी क्लॉक के विपरीत जीवन जी रहे हैं, जहाँ वो बहुत थोड़ी नींद ले रहे हैं, शिफ़्ट में काम कर रहे हैं या शाम के समय कंप्यूटर और स्मार्टफ़ोन का ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं.

नींद का महत्व :

→ वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसी आदत का असर इंसान के डीएनए पर पड़ सकता है और कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का कारण बन सकता है.

→ कम नींद के कारण हृदय रोग, टाइप-2 डायबिटीज, संक्रमण और मोटापे जैसे रोग हो सकते हैं.

→ वहीं नींद से जुड़े शोध बताते हैं कि स्वस्थ जीवन शैली के साथ-साथ अच्छी नींद आपके दिल पर मंडराने वाले ख़तरों को कम करती है.

→ इसलिए वैज्ञानिक सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिहाज से लोगों को पर्याप्त नींद लेने के लिए प्रोत्साहित करने और हर घर में इसकी सीख देने की बात कहते हैं.

→ ऐसे ही एक शोध में अच्छी नींद से मोटापा कम होने और छोटे बच्चों की याददाश्त बेहतर होने की बात कही गई है.

आप को ये जानकारी कैसे लगी ? हमे कमेंट करके जरूर बतायें.

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